पेड़ और मनुष्य के बीच संवाद लेखन - Dialogue writing between Tree and Human in Hindi
Dialogue writing between Tree and Human in Hindi : इस लेख में पेड़ और मनुष्य के बीच में तीन तीन संवाद लेखन दिए गए है। सभी संवाद मनुष्य और वृक्ष के बीच भिन्न-भिन्न विषयों पर है।
पेड़ और मनुष्य के बीच संवाद लेखन - 1
पेड़ : हे मनुष्य मैं तुम्हे छाया, शीतल वायु और फल देता हूँ। आखिर तुम मुझे क्यों काटते हो ?
मनुष्य : अगर हम तुम्हे काटेंगे नहीं तो फिर फर्नीचर बनाने के लिए लकड़ी कैसे मिलेगी ?
पेड़ : उसके लिए तो तुम मेरी शाखाएं भी काट सकते हो।
मनुष्य : बात तो ऐसे कर रहे हो जैसे तुम्हे भी दर्द होता हो ?
पेड़ : क्या पेड़ों को दर्द नहीं हो सकता ? आखिर पेड़ों में भी जीवन होता है।
मनुष्य : क्या सचमुच पेड़ जीवित होते हैं ?
पेड़ : अवश्य।
मनुष्य : मुझे अपनी गलती का अफ़सोस हैं।
पेड़ : क्या सच में ?
मनुष्य : हाँ, क्या मैं अपनी गलती सुधार नहीं सकता ?
पेड़ : अगर तुम चाहो तो वृक्षारोपण करके अपनी गलती सुधार सकते हो।
मनुष्य : फिर तो मैं अवश्य वृक्षारोपण करूँगा और अपने मित्रों को भी इसके लिए प्रेरित करूँगा।
वृक्ष और मनुष्य के बीच संवाद लेखन - 2
वृक्ष : हे मनुष्य तुम्हे जरा भी आभास है की तुम मुझे काटकर अपने अस्तित्व को खतरे में डाल रहे हो ?
मनुष्य : क्या बकवास है ?
वृक्ष : हे मानव तुम सच में दया के पात्र हो। क्या तुम ज्ञात नहीं की तुम्हारा अस्तित्व मेरे अस्तित्व से जुड़ा है ?
मनुष्य : वो भला कैसे ?
वृक्ष : ज़रा सोचो अगर मैं न होता तो तुम्हे तरह-तरह के फल, सब्जी, औषधियां और लकड़ी कैसे मिलती ?
मनुष्य : मुझे अपने किये का पछतावा है।
वृक्ष : मुझे ख़ुशी है की तुम्हे समझ आ गया। क्या तुम्हे पता है पेड़ वर्षा करने में भी सहायता करते हैं और जल स्तर को भी बनाये रखते हैं ?
मनुष्य : वास्तव में पेड़ों के बिना तो जीवन संभव ही नहीं है।
वृक्ष : सही कहा !
मनुष्य : मैं आज ही वृक्षारोपण करने का प्रण लेता हूँ।
वृक्ष : धन्यवाद !
पेड़ और मनुष्य के बीच संवाद लेखन - 3
मनुष्य : तुम हरे भरे और सुंदर लगते हो।
पेड़ : मुझे भी तुम अच्छे लगते हो।
मनुष्य : क्या तुम मेरे मित्र बनोगे?
पेड़ : मैं तुम्हें अच्छे अच्छे फल खाने के लिए दूँगा।
मनुष्य : मैं तुम्हारी जड़ों में पानी दूँगा ताकि तुम फल फूल सको।
पेड़ : धूप में जब तुम थक जाओ तो तुम मेरी छाया में आकर विश्राम करना।
मनुष्य : मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा और किसी प्रकार की क्षति नहीं पहुँचने दूँगा।
पेड़ : मैं भी सदा तुम्हारे काम आऊँगा।"
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