शामनाथ का चारित्रिक विश्लेषण कीजिए।
शामनाथ चीफ की दावत कहानी के केंद्रीय पत्र हैं। शामनाथ का चरित्र एक स्वार्थी और कर्तव्यहीन व्यक्ति का है जो अपनी माँ को फालतू समझकर कहीं छिपाना चाहता है। इस लेख में शामनाथ के चरित्र की (चारित्रिक) विशेषताओं का विस्तार से वर्णन किया गया है।
शामनाथ की चारित्रिक विशेषताएं
1) सामान्य मानव : चीफ की दावत कहानी परम्परित नायकत्व परंपरा से विद्रोह करती है। इसका मुख्य पात्र शामनाथ है। लेकिन वह नायक नहीं है। हम शामनाथ की खलनायक भी नहीं कह सकते। वह आधुनिकता और तरक्की की दौड़ में भागता हुआ आज का सामान्य मानव है। दुख यह है कि इस भागमभाग में शामनाथ ने अपने नैतिक मूल्य और सांस्कृतिक उदारता भुला दी है। शामनाथ आधुनिकता और तरक्की की दौड़ में भागता हुआ आज का सामान्य मानव है। वह माँ का पल-पल अपमान करने वाला, उसे बोझ समझने वाला अनुत्तरदायी और कृतघ्न पुत्र है।
2) कुपुत्र / कृतघ्न : एक चरित्र है माँ का - जिसने अपनी युवावस्था बेटे को पालने - पोसने-पढ़ाने में होम कर दी। जिसे कुछ बनाने के लिए अपने जेवर तक बेच डाले और दूसरा चरित्र है शामनाथ यानि बेटे का - जिसे न माँ का बैठना पसंद है और न सोना। माँ बैठती है तो कुर्सी पर पैर रख लेती है और सोती है तो जोर- जोर से खर्राटे लेने लगती है। उसके लिए माँ शर्म का विषय है। घर का फालतू सामान है। कूड़ा- करकट है। मेहमानों के आने पर उसे रात भर के लिए सहेली के यहाँ भेजा जा सकता है। कोठरी में बंद करकर बाहर से ताला लगाया जा सकता है।
3) महत्वाकांक्षी : शामनाथ महत्वाकांक्षी है। उसे तरक्की चाहिए। इस तरक्की के लिए वह कुछ भी कर सकता है। मूल्यातिक्रमण कर सकता है। नैतिक मानदंड भूल सकता है। माँ को अपमानित और आतंकित कर सकता है।
4) अवसरवादी : शामनाथ अवसरवादी, स्वार्थी और आत्मकेंद्रित व्यक्ति है। समय के साथ-साथ वह विधवा माँ के त्याग को भूल चुका है। वह क्यों याद रखे कि माँ ने गरीबी में आभूषण बेच - बेच कर उसे शिक्षित किया था और उसी के कारण आज वह अच्छी नौकरी पर तो है। अब उसकी जरूरत पदोन्नति है। पदोन्नति उसे अमेरिकी चीफ ही देगा। इसीलिए वह चीफ को दावत देता है और ऐसे अवसर पर माँ का बुढ़ापा उसे शर्मसार कर रहा है। अब उसके लिए माँ घर के फालतू सामान से भी गई -बीती है। उसे छिपाने का पूरा यत्न किया जाता है। यह यत्न तो सफल नहीं होता, लेकिन एक चमत्कार हो जाता है कि अमेरिकन चीफ माँ से प्रभावित हो जाता है। वह माँ को नमस्ते करता है, हाथ मिलाता है, माँ से टप्पे सुनता है और माँ की दस्तकारी के रूप में दिखाई गई फुलकारी में रूचि दिखाता है। वह माँ जिसके बारे में शामनाथ कहता था कि इसे भाई के यहाँ होना चाहिए, एकाएक उसकी जरूरत बन जाती है, अब माँ के कहने पर भी उसे हरिद्वार नहीं भेजता, क्योंकि माँ को साहब के लिए फुलकारी बनानी है और साहब देखने भी आ सकते हैं कि माँ कैसे फुलकारी बनाती है।
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