Kamada Ekadashi Vrat: कामदा एकादशी का व्रत, महत्व और कथा

Kamada Ekadashi Vrat: कामदा एकादशी का व्रत, महत्व और कथा

चैत्र शुक्ल पक्ष में ‘कामदा’ नाम की एकादशी होती है। ऐसी मान्यता है कि ‘कामदा एकादशी’ ब्रह्महत्या आदि पापों तथा पिशाचत्व आदि दोषों से मुक्ति प्रदान करने वाली है। पुराणों में कामदा एकादशी के विषय में एक कथा मिलती है। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पाप नाश हो जाते हैं। संसार में कामदा एकादशी के बराबर कोई और दूसरा व्रत नहीं है। इसकी कथा पढ़ने या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

कामदा एकादशी का व्रत कैसे करें?

कामदा एकादशी के व्रत वाले दिन प्रात: काल में उठकर शौच एवं स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। उसके बाद पूजा स्थान पर एक चौकी स्थापित करें। उस पर पीले रंग का कपड़ा बिछा दें। फिर भगवान विष्णु की मूर्ति की स्थापना करें और हाथ में फूल, चावल और जल लेकर कामदा एकादशी व्रत का संकल्प लें। इस दौरान ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करते रहें

गीता का पाठ करें या किसी दूसरे से सुन लें। तत्पश्चात उपासक पुष्प, धूप आदि से भगवान विष्णु की पूजा करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करे।

अद्य स्थित्वा निराहारः, सर्वभोगविवर्जितः।

श्वो भोक्ष्ये पुण्डरीकाक्ष

शरणं मे भवाच्युत।

अर्थात हे कमलनयन भगवान नारायण! आज मैं सब भोगों से अलग हो निराहार रहकर कल भोजन करूँगा। अच्युत ! आप मुझे शरण दें।

भगवान श्री विष्णु के सम्मुख संकल्प करें कि आज मैं चोर, पाखण्डी और दुराचारी मनुष्य से बात नहीं करूंगा और न ही किसी का दिल दुखाऊँगा। गौ, ब्राह्मण आदि को फलाहार व अन्नादि देकर प्रसन्न करूंगा। रात्रि को जागरण कर कीर्तन करुँगा।

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय इस द्वादश अक्षर मंत्र अथवा गुरुमंत्र का जाप करूंगा, ऐसी प्रतिज्ञा करके श्री विष्णु भगवान का स्मरण कर प्रार्थना करें कि हे त्रिलोकपति मेरी लाज आपके हाथ है, अतः मुझे इस प्रण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करें।

पूरे दिन व्रत रखने के बाद रात को भगवान विष्णु की श्रद्धाभाव से आराधना करनी चाहिए।

कामदा एकादशी का क्या महत्व है?

चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी (Kamada Ekadashi) कहा जाता है। इस दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। भगवान विष्णु के भक्त इस दिन व्रत रखते हैं। ऐसी मान्यता है (Kamada Ekadashi) कि कामदा एकादशी के दिन व्रत रखने और पूजा करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है.

कामदा एकादशी के व्रत की कथा

प्राचीनकाल में भोगीपुर नगर में पुण्डरीक नामक राजा राज्य करते थे। उनका दरबार किन्नरों व गंधर्षों से भरा रहता था, जो गायन और वादन में निपुण और योग्य थे। वहां किन्नर व गंधर्वो का गायन होता रहता था।

एक दिन नागराज पुण्डरीक के दरबार में ललित नामक गंधर्व गा रहा था। अचानक उसे अपनी प्रियतमा की याद आ गई। उसी समय उसका ध्यान भंग हो गया। उसकी स्वर लहरी व ताल बिगड़ने लगे और उसके गायन में विघ्न पड़ गया।

उस समय दरबार में कर्कट नामक ललित का प्रतिद्वंद्वी भी बैठा था। उसने ललित की त्रुटि को ताड़ लिया। उसने राजा को चुगली कर दी।

इस पर राजा पुण्डरीक को बड़ा क्रोध आया। उन्होंने उसी अवस्था में उसे राक्षस होने का शाप दे दिया। ललित राजा के शाप से शापित होकर राक्षस हो गया और राक्षस बनकर वहीं आस-पास विचरने लगा। यह देखकर उसकी पत्नी ललिता बड़ी दुखी हुई। वह भी उसके साथ-साथ भटकने लगी।

अपने पति को इस हालत में देखकर वह बड़ी दुखी होती। वह सदैव सोचती रहती कि क्या करूं...कैसे अपने पति को इस शाप से मक्ति दिलाऊं? वह जितना इस बारे में सोचती उतना ही परेशान होती।

एक दिन घूमते-घूमते गंधर्व पत्नी ललिता विन्ध्य पर्वत पर रहने वाले ऋष्यमक ऋषि के पास जा पहुंची। उसने अपने शापित पति के उद्धार के बारे में उनसे उपाय पूछा। तब ऋषि ने उसे 'कामदा एकादशी' का व्रत करने को कहा। साथ ही व्रत की सम्पूर्ण विधि बताई।

उनका आशीर्वाद लेकर गंधर्व पत्नी अपने स्थान पर लौट आई और उसने श्रद्धापूर्वक 'कामदा एकादशी' का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उसका पति शापमुक्त हो गया और उसने पुन: गंधर्व स्वरूप को प्राप्त किया।


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