पूस की रात कहानी की भाषाशैली - Poos ki Raat Kahani ki Bhasha Shaili

Poos ki Raat Kahani ki Bhasha Shaili : इस लेख में मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी 'पूस की रात' की भाषाशैली का वर्णन किया गया है। 

पूस की रात कहानी की भाषाशैली - Poos ki Raat Kahani ki Bhasha Shaili

पूस की रात कहानी की भाषाशैली - भाषा 'पूस की रात' प्रेमचंद की अत्यंत प्रौढ़ रचना मानी जाती है। यह कहानी जितनी कथ्य और प्रतिपाद्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, उतनी ही भाषा और शैली की दृष्टि से भी। यह कहानी ग्राम्य जीवन पर आधारित है। लेकिन प्रेमचंद की आरंभिक कहानियों में जिस तरह का आदर्शवाद दिखाई देता था, वह इस कहानी में नहीं है। इसका प्रभाव कहानी की शैली पर भी दिखाई देता है। प्रेमचंद ने इस कहानी में अपने कथ्य को यथार्थपरक दृष्टि से प्रस्तुत किया है इसलिए उनकी शैली भी यथार्थवादी है । प्रेमचंद की कहानियों की भाषा बोलचाल की भाषा के नजदीक है। उनके यहाँ संस्कृत, अरबी, फारसी आदि भाषाओं के उन शब्दों का इस्तेमाल हआ है जो बोलचाल की हिंदी के अंग बन चुके हैं। प्रायः वे तद्भव शब्दों का प्रयोग करते हैं। वे कहानी के परिवेश के अनुसार शब्दों का चयन करते हैं, जैसे ग्राम्य जीवन से संबंधित कहानियों में देशज शब्दों, मुहावरों तथा लोकोक्तियों का अधिक प्रयोग होता है। वाक्य रचना भी सहज होती है। लंबे और जटिल वाक्य बहुत कम होते हैं । प्रायः छोटे और सुलझे हुए वाक्य होते हैं ताकि पाठकों तक सहज रूप से संप्रेषित हो सके।

‘पूस की रात‘ कहानी ग्रामीण जीवन से संबंधित है। इसलिए इस कहानी में देशज और तद्भव शब्दों का प्रयोग अधिक हुआ है। 

तद्भव शब्द : कम्मल, पूस, उपज, जनम, ऊख।

देशज शब्द : हार, डील, आले, धौंस, खटोले, पुआल, टप्पे, उपजा, अलाव, दोहर। 

तद्भव और देशज शब्दों के प्रयोग से कहानी के ग्रामीण वातावरण को जीवंत बनाने में काफी मदद मिलती है। लेकिन प्रेमचंद ने उर्दू और संस्कृत के शब्दा ें का भी प्रयोग किया है।उर्दू के प्रायः ऐसे शब्द जो हिंदी में काफी प्रचलित है, ही प्रयोग किए गए है। जैसे, खुशामद, तकदीर, मजा, अरमान, खुशबू, गिर्द , दिन, साफ, दर्द, मालगुजारी आदि। 


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